केंद्र सरकार का SC में हलफनामा:ईसाई इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को नहीं मिलेगा अनुसूचित जाति का दर्जा!
भारत:11/11/2022
इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का विरोध किया है. केंद्र सरकार ने कहा इस्लाम और क्रिश्चियनिटी अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इन धर्मों में जातीय आधार पर भेदभाव नहीं है. ईसाई या इस्लाम समाज में छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था प्रचलित नहीं थी. ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा. सिखों, बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई धर्म में धर्मांतरण से भिन्न रही है. दूसरे धर्म में परिवर्तन करने पर व्यक्ति अपनी जाति खो देता है. कोर्ट राष्ट्रपति के आदेश में बदलाव का निर्देश नहीं दे सकता। केंद्र ने कहा , अनुसूचित जाति की स्थिति की पहचान एक विशिष्ट सामाजिक कलंक और इससे जुड़े पिछड़ेपन के आसपास केंद्रित है , जो संविधान ( अनुसूचित जाति ) आदेश , 1950 के तहत मान्यता प्राप्त समुदायों तक सीमित है । 1950 के आदेश के अनुसार , अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य के रूप में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का सांविधानिक अधिकार केवल हिंदू , सिख या बौद्ध धर्मों के लोगों को दिया गया। गया है । केंद्र सरकार ने ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरित दलितों को आरक्षण का लाभ देने के निर्देश की मांग वाली याचिकाओं के एक समूह पर यह लिखित प्रतिक्रिया दायर की है । शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त को केंद्र से ' दलित ईसाइयों की राष्ट्रीय परिषद और अन्य की जनहित याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था । केंद्र सरकार ने कहा , संविधान ( अनुसूचित जाति ) आदेश , 1950 ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित थी , जिसमें स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया कि ईसाई या इस्लामी समाज के लोगों ने कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं किया था ।
एक विशेष वर्गीकरण या एक विशेष कानून बनाने से पहले केवल आवश्यकता यह है कि विधायी वर्गीकरण एक समझदार अंतर पर आधारित होना चाहिए जिसका उस उद्देश्य से उचित संबंध हो जिसे विधायिका प्राप्त करना चाहती है.