स्वामी विवेकानंद जयंती:जब मूर्ति पूजा के सवाल पर एक राजा को दिया ऐसा जवाब कि राजा हो गया शर्मसार!मुस्लिम के घर ठहरने पर मचा था हंगामा,श्वेत प्रोफेसर ने की स्वामी को नीचा दिखाने की नाकाम कोशिश!स्वामी विवेकानंद के दिलचस्प किस्से
स्वामी विवेकानंद एक भिक्षु की तरह कपड़े पहनते थे. वो एक तपस्वी का जीवन जीते थे जो दुनिया भर में यात्रा करते थे और तरह-तरह के लोगों से मिलते थे. एक बार जब स्वामी जी विदेश यात्रा पर गए तो उनके कपड़ों ने लोगों का ध्यान खींचा. इतना ही नहीं एक विदेशी व्यक्ति ने उनकी पगड़ी भी खींच ली. स्वामी जी ने उससे अंग्रेजी में पूछा कि तुमने मेरी पगड़ी क्यों खींची? पहले तो वो व्यक्ति स्वामी जी की अंग्रेजी सुनकर हैरान रह गया. उसने पूछा आप अंग्रेजी बोलते हैं? क्या आप शिक्षित हैं? स्वामी जी ने कहा कि हां मैं पढ़ा-लिखा हूं और सज्जन हूं. इस पर विदेशी ने कहा कि आपके कपड़े देखकर तो ये नहीं लगता कि आप सभ्य व्यक्ति हैं. स्वामी जी ने उसे करारा जवाब देते हुए कहा कि आपके देश में दर्जी आपको सज्जन बनाता है जबकि मेरे देश में मेरा किरदार मुझे सज्जन व्यक्ति बनाता है.
जब श्वेत प्रोफेसर ने की स्वामी विवेकानंद को नीचा दिखाने की नाकाम कोशिश
पीटर नाम का एक श्वेत प्रोफेसर स्वामी विवेकानंद से नफरत करता था।उस समय स्वामी तपस्वी नहीं बने थे. एक दिन भोजन कक्ष में स्वामी जी ने अपना भोजन लिया और प्रोफेसर के बगल में बैठ गए. अपने छात्र के रंग से चिढ़कर, प्रोफेसर ने कहा, 'एक सुअर और एक पक्षी एक साथ खाने के लिए नहीं बैठते हैं.' विवेकानंद जी ने उत्तर दिया, 'आप चिंता ना करें प्रोफेसर, मैं उड़ जाऊंगा' और ये कहकर वो दूसरी मेज पर बैठने चले गए. पीटर गुस्से से लाल हो गया.
जब बुद्धि की जगह पैसा चुना- प्रोफेसर ने अपने अपमान का बदला लेने का फैसला किया. अगले दिन कक्षा में, उन्होंने स्वामी जी से एक प्रश्न किया, 'श्री दत्त, अगर आप सड़क पर चल रहे हों और आपको रास्ते में दो पैकेट मिलें, एक बैग ज्ञान का और दूसरा धन का तो आप आप कौन सा लेंगे? स्वामी जी ने जवाब दिया, 'जाहिर सी बात है कि मैं पैसों वाला पैकेट लूंगा.' मिस्टर पीटर ने व्यंग्यात्मक रूप से मुस्कुराते हुए कहा, 'मैं, आपकी जगह पर होता, तो ज्ञान वाला पैकेट लेता. स्वामीजी ने सिर हिलाया और जवाब दिया, 'हर कोई वही लेता है जो उसके पास नहीं होता है.'
बार-बार मिल रहे अपमान से प्रोफेसर के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा. उसने एक बार फिर बदला लेने की ठानी. परीक्षा के दौरान जब उसने स्वामी जी को परीक्षा का पेपर सौंपा तो उन्होंने उस पर 'इडियट' लिखकर उन्हें दे दिया. कुछ मिनट बाद, स्वामी विवेकानंद उठे, प्रोफेसर के पास गए और उन्हें सम्मानजनक स्वर में कहा, 'मिस्टर पीटर, आपने इस पेपर पर अपने हस्ताक्षर तो कर दिए, लेकिन मुझे ग्रेड नहीं दिया.'
मूर्ति पूजा को लेकर जब एक राजा ने स्वामी विवेकानंद की उड़ाई थी खिल्ली,तब विवेकानंद के जवाब के आगे बगले झांकने लगे थे राजा।
एक बार स्वामी जी अलवर के महाराजा मंगल सिंह के दरबार में पहुंचे. राजा ने उनका मजाक उड़ाते हुए सवाल किया, 'स्वामी जी, मैंने सुना है कि आप एक महान विद्वान हैं. जब आप आसानी से जीवन यापन कर सकते हैं और एक आरामदायक जिंदगी जी सकते हैं, तो आप एक भिखारी की तरह क्यों रहते हैं?.'
इस पर विवेकानंद ने बहुत शांति से उत्तर देते हुए कहा, 'महाराजा जी, मुझे बताइए कि आप क्यों अपना समय विदेशी लोगों की संगति में बिताते हैं और अपने शाही कर्तव्यों की उपेक्षा करते हुए भ्रमण पर निकल जाते हैं? स्वामी जी के इस जवाब से दरबार में उपस्थित सभी लोगों अचंभित रह गए. हालांकि, राजा ने भी मौके का फायदा उठाते हुए कहा कि मुझे यह पसंद है और मैं इसका आनंद लेता हूं. उस समय तो स्वामी जी ने बात को यहीं समाप्त कर दिया.एक बार स्वामी जी जब अलवर के महाराजा के दरबार में पहुंचे तो उन्होंने राजा के शिकार किए कई जानवरों के सामान और चित्र देखे. स्वामी जी ने कहा, 'एक जानवर भी दूसरे जानवर को बेवजह नहीं मारता, फिर आप उन्हें सिर्फ मनोरंजन के लिए इन्हें क्यों मारते हैं? मुझे यह अर्थहीन लगता है. मंगल सिंह ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, 'आप जिन मूर्तियों की पूजा करते हैं, वो मिट्टी, पत्थर या धातुओं के टुकड़ों के अलावा और कुछ नहीं हैं. मुझे यह मूर्ति-पूजा अर्थहीन लगती है. हिंदू धर्म पर सीधा हमला देख स्वामी जी ने राजा को समझाते हुए कहा कि हिंदू केवल भगवान की पूजा करते हैं, मूर्ति को वो प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
विवेकानंद ने राजा के महल में पिता की एक तस्वीर लगी देखी. स्वामी जी इस तस्वीर के पास पहुंचे और दरबार के दीवान को उस पर थूकने को कहा. ये देखकर राजा को गुस्सा आ गया. उसने कहा, 'आपने उसे मेरे पिता पर थूकने के लिए कैसे कहा? नाराज राजा को देखकर स्वामी जी बस मुस्कुराए और उत्तर दिया, 'ये आपके पिता कहां हैं? ये तो सिर्फ एक पेंटिंग है- कागज का एक टुकड़ा, आपके पिता नहीं.' ये सुनकर राजा हैरान रह गया क्योंकि ये मूर्ति पूजा पर राजा के सवाल का तार्किक जवाब था. स्वामी जी ने आगे समझाया, 'देखिए महाराज, ये आपके पिता की एक तस्वीर है, लेकिन जब आप इसे देखते हैं, तो ये आपको उनकी याद दिलाती है, यहां ये तस्वीर एक 'प्रतीक' है. अब राजा को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ और उसने स्वामी जी से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी.
स्वामी विवेकानंद जब एक मुस्लिम के घर ठहरे थे तो मच गया था हंगामा
विवेकानंद के लिए वर्ष 1888 एक खास मोड़ लेकर आया. उन्होंने तय किया कि वो भारत को करीब से देखेंगे और अपने देश के लोगों के बारे में जानेंगे. पैदल यात्रा करते हुए जब वह माऊंट आबू पहुंचे तो एक मुस्लिम के यहां रुके. उनके इस कदम से काफी चर्चाएं शुरू हो गईं. आखिरकार एक दिन उनसे इस बारे में एक सवाल पूछ लिया गया तो विवेकानंद नाराज हो उठे.
दरअसल विवेकानंद ने 1888 में भारत यात्रा करनी शुरू की. उन्होंने 03 साल तक पैदल चलते हुए पूरे भारत को देखा. वह कई जगहों पर गए. कहीं वह महाराजाओं के यहां ठहरे तो कहीं किसी गरीब के घर तो कभी किसी व्यापारी के यहां.विवेकानंद 1891 की गर्मियों में माउंट आबू में पहुंचे. माउंट आबू राजस्थान में है. यह अरावली पहाड़ियों में स्थित एक हिल स्टेशन है. वह यहां नक्की झील के किनारे एक गुफा में रुके.जब वह यहां रुके थे, तभी उनके पास एक मुस्लिम वकील पहुंचे. उन्होंने विवेकानंद से उनके घर चल कर रुकने का अनुरोध किया. वह तैयार हो गए. वह यहां कई दिन रुके। इस पर जब कुछ लोगो ने आपत्ति की तो स्वामी विवेकानंद खासे नाराज हो गए।महाराजा खेत्री के निजी सचिव जगमोहनलाल उनसे मिलने आए. उन्हें बड़ी हैरानी थी कि स्वामी जी कई दिनों से एक मुस्लिम के यहां रुके हैं. वो हतप्रभ थे कि विवेकानंद कैसे उनके यहां खाना खा रहे हैं. उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने सवाल पूछ ही लिया.स्वामी जी आप तो हिंदू संन्यासी हैं. आपके लिए ये कितना उचित है कि आप एक मुस्लिम के यहां रह रहे हैं और आपको खाना भी उनका छुआ होता है. आप कैसे उन्हें खा रहे हैं. इस सवाल पर विवेकानंद नाराज हो गए और प्रतिउत्तर में जवाब दिया,आपके ये कहने का मतलब क्या है. मैं संन्यासी हूं. मैं सभी सामाजिक और सांसारिक बातों से ऊपर हूं. मैं तो एक भंगी (स्वीपर) के यहां भी कुछ खा सकता हूं....मैं हर किसी में एक ब्राह्मण हर कहीं देखता हूं. चाहे वो छोटा हो या बड़ा. मेरे लिए कोई ना बड़ा है और ना कोई छोटा. शिवा..शिवा..शिवा.