‘उत्तराखण्ड में गांधीः यात्रा और विचार’ पुस्तक पर हुई विस्तृत चर्चा

नई दिल्ली। गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली की ओर से गोष्ठी कक्ष में लेखक सुनील भट्ट की पुस्तक ‘उत्तराखंड में गांधीः यात्रा और विचार’ पर एक विस्तृत चर्चा आयोजित की गई। इसमें प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत व सचिव अशोक कुमार के अलावा प्रसिद्ध समीक्षक भारत डोगरा, गांधी विचारक व लेखक अरविन्द मोहन, दिल्ली विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग से डॉ. राजीव रंजन गिरी, मेजर जनरल निलेन्द्र कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता दया सिंह और उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता व लेखक अनिल नौरिया उपस्थित रहे। बता दें कि यह किताब एमाज़ॉन पर भी उपलब्ध है।
गांधी शांति प्रतिष्ठान क्यों इस पुस्तक पर चर्चा कर रहा है, इस पर कुमार प्रशांत ने विस्तार से रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि हम गांधीजी को उनके बड़े-बड़े कामों के लिए जानते हैं, जबकि आम समाज के जो लोग उनके संपर्क में आए, उनके नजरिए से गांधी को नहीं देखा गया। यह पुस्तक गांधीजी के असर व उनकी सक्रियता को छोटे नगरों व शहरों के नजरिए से देखने का यह एक सराहनीय प्रयास है। इस पुस्तक में दर्ज किस्से गांधीजी के असर को एक नई रोशनी में पेश करते हैं। उन्होंने पुस्तक को शोधपरक कार्य व साहित्य लेखन का एक अद्भुत मिश्रण बताते हुए कहा कि इस प्रकार की रचनाएं हिन्दी में कम ही लिखी जाती है और इस प्रकार के लेखन की हिन्दी जगत को सख्त जरूरत है।
लेखक सुनील भट्ट ने पुस्तक के बारे में बताया कि उन्होंने इस पुस्तक को मुख्यतः प्राथमिक स्रोतों पर आधारित करते हुए लिखा है। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ उस दौर के समाचार पत्रों का गहन अध्ययन किया बल्कि गांधी जी के लेखों, पत्रों और उनके आश्रम के साथियों के संस्मरणों से भी सामग्री जुटाई। उत्तराखण्ड में जहां-जहां गांधीजी गए थे, उन्होंने स्वयं उन सभी स्थानों की यात्रा भी की। इसने इस पुस्तक को गांधीजी की उत्तराखण्ड यात्राओं पर एक प्रामाणिक दस्तावेज बना दिया।
समीक्षा के तौर पर भारत डोगरा ने पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए गांधीजी के कार्यक्रमों के अनुशासन को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार इतने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच गांधीजी अपने अखबारों के सम्पादन व लेखन के लिए समय निकालते थे। इसके लिए गांधीजी ने दिन में 10 से 5 बजे का समय निर्धारित किया हुआ था। गांधीजी में टीम बनाने की अद्भुत क्षमता थी और उन्होंने इस प्रकार की यात्राओं में अनेक प्रतिभाओं को पहचानकर अपने साथ जोड़ा। दया सिंह ने कहा कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि गांधीजी की यात्राओं पर इस किस्म का लेखन भी हो सकता है। इस पुस्तक ने गांधी पर हो रहे रचना.कार्यों को एक नई रोशनी दी है। डॉ. राजीव रंजन गिरी ने गुरुकुल कांगड़ी व स्वामी श्रद्धानंद जी से गांधी जी के मधुर रिश्तों पर चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार स्वामीजी के परिवार के लोग जीवन भर गांधीजी के साथ जुड़े रहे। ऋषिकेश, कौसानी व मसूरी की यात्राओं के मार्फत उन्होंने बताया कि यह पुस्तक न सिर्फ गांधीजी की राजनीतिक यात्राओं बल्कि उनके विश्राम यात्राओं और मित्रवत यात्राओं पर प्रकाश डालती है। पुस्तक की शोधपरकता पर चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को इसके बॉक्स आइटम और फ़ुटनोट के शानदार इस्तेमाल के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए। इसके चलते इस पुस्तक को पढ़ना रुचिकर बन गया।
अरविन्द मोहन ने इस पुस्तक की क्षेत्रीयता को इसकी ताकत बताया और कहा कि अन्य राज्यों में भी गांधी यात्राओं पर इस प्रकार के अनुसंधान की जरूरत है। इस प्रकार की micro studies गांधी को एक नए ढंग से देखने में मदद करती हैं। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अनिल नौरिया ने बताया कि इन गांधीजी की इन यात्राओं का कुमाऊं और देहरादून, हरिद्वार की जनजागृति पर जो असर हुआ, उसका सर्वाधिक असर 1930 के सविनय आंदोलन के दौरान देखने को मिला, जब राज्य में सैकड़ों लोग जेल गए। उन्होंने इन यात्राओं से उत्तराखण्ड के जन मानस पर पड़े असर पर विस्तार से रोशनी डाली।
वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार प्रदीप कुमार वेदवाल ने आजादी के आंदोलन के दौरान की याद दिलाते अनेक गढ़वाली लोकगीतों का जिक्र करते हुए उत्तराखंड के संस्कारों पर गांधीजी के असर की चर्चा की और बताया कि किस प्रकार एक लंबे समय तक ये गीत आम समाज में लोकप्रिय रहे। कार्यक्रम का संचालन अशोक कुमार ने किया। इस अवसर पर रमेश घिल्डियाल, तेज सिंह, चंद्र सिंह रावत ‘स्वतंत्र’, महेश डोनिया, प्रवीणा भट्ट, सजना नायर, सुमिता नौरिया आदि उपस्थित रहे।