पत्रकारिता पर सवाल: सत्ता की जय-जयकार में डूबा चौथा स्तंभ
-सुनील मेहता-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति और उनकी वैश्विक छवि हाल के वर्षों में गंभीर सवालों के घेरे में है। 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मोदी का कथित तौर पर कमला हैरिस को समर्थन देना, डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद अमेरिका द्वारा भारत पर पहले 25 प्रतिशत और फिर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाना, पहलगाम हमले के बाद भारत पाकिस्तान तनाव में ट्रंप की धमकियां, और मीडिया की चाटुकारिता। ये सभी घटनाएं भारत की कूटनीतिक और आर्थिक स्थिति पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। यह संपादकीय इन घटनाओं का विश्लेषण करता है और मोदी सरकार की नाकामियों को उजागर करता है।
कमला हैरिस का समर्थन और ट्रंप की प्रतिक्रियाः 2024 के अमेरिकी चुनाव में नरेंद्र मोदी ने कथित रूप से कमला हैरिस का समर्थन किया, जो डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद भारत के लिए महंगा साबित हुआ। ट्रंप ने सत्ता में लौटते ही भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया, जिसे बाद में रूस से तेल खरीदने के लिए ‘सजा’ के तौर पर 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। यह टैरिफ भारत के 87 अरब डॉलर के निर्यात को प्रभावित कर रहा है, खासकर टेक्सटाइल, ऑटो-कंपोनेंट्स, और रत्न जैसे क्षेत्रों में। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ट्रेड एम्बार्गो जैसा है, जो छोटे उद्यमियों और किसानों को भारी नुकसान पहुंचाएगा। ट्रंप ने इसे भारत की रूस के साथ तेल खरीद की नीति से जोड़ा, जबकि भारत ने इसे अनुचित और अव्यवहारिक करार दिया। मोदी की यह कूटनीतिक चूक, जिसमें उन्होंने ट्रंप के साथ व्यक्तिगत संबंधों पर अधिक भरोसा किया, भारत को वैश्विक मंच पर कमजोर स्थिति में ला खड़ा किया।
पहलगाम हमला और भारत-पाक तनावः मई 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में ऑपरेशन सिंदूर के तहत सैन्य कार्रवाई की, जिसमें नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया। इस कार्रवाई के बाद चार दिनों तक चले संघर्ष को ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने 24 घंटे का अल्टीमेटम देकर 5 घंटे में रुकवाया। ट्रंप ने बार-बार दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध को रोका, जिसे भारत ने सिरे से खारिज किया। ट्रंप का यह बयान कि मोदी डरपोक निकले और उनकी व्हाइट हाउस में पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिफ मुनीर के साथ डिनर ने भारत को अपमानित किया। मोदी द्वारा ट्रंप के चार फोन कॉल्स को नजरअंदाज करना और व्हाइट हाउस में निमंत्रण ठुकराना इस तनाव को दर्शाता है। यह घटना भारत की कथित रणनीतिक स्वायत्तता को कमजोर करती है, जिसे मोदी सरकार ने दशकों तक बनाए रखने का दावा किया।
भारतीय मीडिया की चाटुकारिताः इन कूटनीतिक और आर्थिक नाकामियों के बावजूद, मीडिया का एक बड़ा हिस्सा मोदी की छवि को चमकाने में लगा रहा। कुछ मीडिया हाउसों ने 50 प्रतिशत टैरिफ को लाभकारी बताते हुए दावा किया कि यह भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा। यह दावा हास्यास्पद है, क्योंकि टैरिफ से भारत के निर्यात-निर्भर उद्योगों, जैसे बास्मती चावल और टेक्सटाइल, को भारी नुकसान हो रहा है, जबकि पाकिस्तान को 19 प्रतिशत टैरिफ का फायदा मिल रहा है। मीडिया की यह चाटुकारिता न केवल तथ्यों को तोड़-मरोड़ रही है, बल्कि जनता को गलत सूचनाएं देकर सरकार की जवाबदेही को कमजोर कर रही है।
वैश्विक मंच पर भारत की स्थितिः विश्व पटल पर भारत की छवि को इन घटनाओं ने गहरा नुकसान पहुंचाया है। ट्रंप की नीतियों ने भारत को रूस और चीन के करीब धकेलने का जोखिम पैदा किया है, जबकि भारत की मेक इन इंडिया पहल ट्रंप के अमेरिका फसर््ट के सामने कमजोर पड़ रही है। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, जिसे विदेश मंत्रालय ने समय-परीक्षित बताया, अब ट्रंप की आक्रामक नीतियों के सामने दबाव में है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का भारत को मृत अर्थव्यवस्था कहना और चीन जैसे अन्य रूसी तेल खरीदारों पर नरम रुख अपनाना भारत के प्रति पक्षपात को दर्शाता है।
निष्कर्षः मोदी की विदेश नीति और आर्थिक रणनीति की नाकामियां भारत को वैश्विक और घरेलू मोर्चे पर कमजोर कर रही हैं। ट्रंप के साथ संबंधों का गलत आकलन, रूस के साथ तेल व्यापार पर अडिग रुख, और पाकिस्तान के साथ तनाव में ट्रंप की मध्यस्थता का दावा भारत की कूटनीतिक कमजोरी को उजागर करता है। भारतीय मीडिया की चाटुकारिता ने इन नाकामियों को छिपाने की कोशिश की, लेकिन तथ्य जनता के सामने हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत को अपनी वैश्विक साख बचानी है, तो उसे पारदर्शी और रणनीतिक कूटनीति अपनानी होगी। अन्यथा, आर्थिक और कूटनीतिक संकट भारत के लोकतांत्रिक और आर्थिक ढांचे को और कमजोर कर सकते हैं।