उत्तराखंड: कौन है उत्तराखंड की पद्मश्री बसंती देवी? पीएम नरेंद्र मोदी भी देते उनका उदाहरण

बीते रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम में उत्तराखंड की बसंती देवी छाई रही। उनका ज़िक्र करते हुए पीएम मोदी ने उनकी भूरी भूरी प्रशंसा की। उन्होंने कहा पद्मश्री पुरुस्कार पाने वालों में कई ऐसे नाम है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते है जिन्होंने साधारण परिस्थितियों में असाधारण काम किये।
आइये जानते है इसी असाधारण उत्तराखंडी महिला बसंती देवी के बारे में।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के कनालीछीना की रहने वाली बसंती सामंत शिक्षा के नाम पर मात्र साक्षर थीं। 12 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। कुछ ही समय के बाद पति की मौत हो गई। दूसरा विवाह करने की बजाय उन्होंने पिता की प्रेरणा से मायके आकर पढ़ाई शुरू कर दी। इंटर पास करने के बाद गांधीवादी समाजसेविका राधा बहन से प्रभावित होकर सदा के लिए कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में आ गईं। वर्तमान में आश्रम संचालिका नीमा बहन ने बताया कि बसंती बहन कुछ समय से पिथौरागढ़ में ही अपना जीवन यापन कर रही है।
कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम की बसंती देवी को समाज सेवा के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान मिला। पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्षरत बसंती बहन ने सूखती कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से सशक्त मुहिम चलाई। घरेलू हिंसा और महिला उत्पीडऩ रोकने के लिए उनका जनजागरण आज भी जारी है। बसंती देवी ने समाजसेवा की शुरुआत अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लॉक में बालबाड़ी कार्यक्रमों के माध्यम से की। यहां उन्होंने महिलाओं के भी संगठन बनाए। 2003 में लक्ष्मी आश्रम की संचालिका राधा बहन ने उन्हें अपने पास बुलाया और कोसी घाटी के गांवों में महिलाओं को संगठित करने की सलाह दी। बसंती बहन के प्रयासों से कौसानी से लेकर लोद तक पूरी घाटी के 200 गांवों में महिलाओं के सशक्त समूह बने हैं। उन्होंने महिलाओं और पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए 2008 में काम शुरू किया। गांवों में महिला प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संपर्क रखकर उन्होंने आत्मनिर्भर बनाया। वर्तमान में 242 महिला प्रतिनिधि सशक्तीकरण अभियान से जुड़ी हैं।