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25 जून इमरजेंसी:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनाव में धांधली का दोषी पाया तो इमरजेंसी लगाकर देश को दी सजा!लोकतंत्र की ताकत मीडिया पर किया था कुठाराघात,पत्रकारों को डाला जेल,छीनी थी मान्यता,लोगो की जबरन नसबंदी कर दी प्रताड़ना,जानिए इतिहास के इस काले अध्याय को

  • Kanchan Verma
  • June 25, 2022
25 June Emergency: Allahabad High Court found Indira Gandhi guilty of rigging the Lok Sabha elections, imposed emergency and punished the country! The power of democracy was slandered on the media, journalists were jailed, recognition was snatched, people were forcibly sterilized, tortured Know this

25 जून कहने को तो हर साल के कैलेंडर में छपी एक तारीख भर है लेकिन इसी तारीख में आज से 47 साल पहले भारत के इतिहास में एक काला अध्याय जुड़ा था। कैलेंडर की 25 जून के पीछे भारत की वो हकीकत छिपी हुई है जिसे लोकतंत्र की सबसे बड़ी हार माना गया। जी हां! 25 जून 1975 को तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने 21 महीने की इमरजेंसी घोषित कर दी थी। 


ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के कहने पर भारत के संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन इमरजेंसी लागू की थी,जिसे आज भी अलोकतांत्रिक कहा जाता है। इमरजेंसी पीरियड को भारतीय इतिहास की सबसे ज्यादा काली अवधि माना जाता है।


एक प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश को इमरजेंसी की आग में झोंक दिया। 25 जून, 1975 रात 12 बजे मतलब 26 जून को 00:00 बजे तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी (आपातकाल) की घोषणा की थी. आकाशवाणी पर 26 जून 1975 की सुबह प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी, भाईओ और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है इससे आतंकित होने का कोई कारण नही है"। यह कहते हुए इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी।


इंदिरा के अचानक इस फैसले का कारण यह था कि 12 जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें साल 1971 के लोकसभा चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था और उन पर कोई भी पद संभालने पर छह साल का प्रतिबंध लगा दिया था।चुनाव में हारे प्रत्याशी राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी थी. उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, तय सीमा से अधिक खर्च और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया अदालत ने भी इन आरोपों को सही ठहराया था ,लेकिन इंदिरा ने कोर्ट के इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 25 जून को देशभर में इमरजेंसी लागू कर दी।


देश में इमरजेंसी लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी समेत कई बड़ें नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था. कहा जाता है कि छोटे-बड़े समेत लोगों की इतनी गिरफ्तारी की गई थी कि जेल में जगह भी कम पड़ गई थी।

 


देश में इमरजेंसी तकरीबन 21 महीनों तक लागू रही।  इन 21 महीनों में भारत की दशा और दिशा दोनों ही बदल गई। आइए ये भी जानते हैं इमरजेंसी के दौरान भारत में क्या क्या बदला?


इमरजेंसी में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया पर किया कुठाराघात-

भारत मे मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है लेकिन इंदिरा गांधी के शासन में स्वतंत्र मीडिया को सबसे बड़ा झटका लगा था। इमरजेंसी के  दौरान मीडिया पर पाबंदी लगा दी गई। लोकतंत्र की ताकत पर सबसे बड़ा कुठाराघात किया गया। तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री आईके गुजराल को पद से हटा दिया गया, जिसके बाद उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इंदिरा सरकार की इस पाबंदी के खिलाफ कई अखबारों ने जमकर विरोध किया। इंडियन एक्सप्रेस, स्टेटमेंट जैसे उस वक्त के अखबारों ने विरोध में संपादकीय पेज खाली छोड़ दिया। सरकार ने सभी नेशनल इंटरनेशनल न्यूज़ पेपरों पर रोक लगा दी कई विदेशी पत्रकारों को निष्कासित कर दिया,जबकि 40 से ज़्यादा भारतीय पत्रकारों से उनकी मान्यता वापस ले ली। बाद में कई पत्रकारों को भी जेल में डाल दिया गया।
जेपी की रामलीला मैदान में हुई 25 जून की रैली की खबर देश में न पहुंचे इसलिए दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई ताकि खबरें अखबरों में छपे ही नहीं। अखबारों और रेडियो में सिर्फ वही खबरें आती थीं, जिन्हें सरकार आम जनता तक जाने देना चाहती थी।
प्रेस की आज़ादी छिनने के पीछे कांग्रेस की सरकार अक्सर ये दलील देती सुनाई दी कि संविधान का अनुच्छेद 19(1) (a) सभी भारतीयों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार की गारंटी देता है। हालांकि अनुच्छेद 19(2) इस स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाता है। इसमें कहा गया है कि खंड (1) के उपखंड (ए) में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा, या राज्य को कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा। जहां तक कि ऐसा कानून प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लगाता है।" इंदिरा गांधी सरकार ने इसका इस्तेमाल प्रेस पर प्रतिबंध लगाने और डेढ़ साल से अधिक समय तक किया,ये लोकतंत्र में मीडिया का गला घोंटने जैसा था।

इमरजेंसी में नसबंदी-
 
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने पांच सूत्री एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया. इसमें नसबंदी, वयस्क शिक्षा, दहेज प्रथा को खत्म करना, पेड़ लगाना और जाति प्रथा उन्मूलन शामिल था. इस बीच सिर्फ 19 महीने में देशभर में करीब 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करा दी गई थी.जिसके बाद भारतवासियों ने इंदिरा हटाओ का नारा तय कर लिया.अचानक फैसला आया और हजारों लोगों की एक साथ नसबंदी कर दी गई. ऐसा नहीं था कि लोग बहुत सरलता से नसबंदी कराने के लिए मान गए थे बल्कि उनके साथ कठोरता अपनाई गई और मजबूर किया गया नसबंदी कराने के लिए. इंदिरा गांधी के सबसे बड़े सलाहकार बन कर उभरे संजय गांधी की सलाह पर देश की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए नसबंदी कार्यक्रम शुरू किया गया और हजारों लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की जाने लगी। ऐसा भी कहा जाता है कि इमरजेंसी के दौरान तानाशाह बन चुकी इंदिरा सरकार द्वारा 13 वर्ष के लड़को से लेकर 60 वर्ष तक के बुजुर्गों को जबरन पकड़ पकड़ कर उनकी नसबंदी की गई। 

मौलिक अधिकार खत्म- 

इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा करते ही देश में मौलिक आधार मिलने वाली अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22 को निलंबित कर दिया. यह अनुच्छेद लोगों को जीने का अधिकार, समानता का अधिकार और संपत्ति सुरक्षा का अधिकार देता है. इसके अलावा तत्कालीन सरकार ने आईपीसी के कानूनों में भी बदलाव कर दिया. पहले, जहां गिरफ्तारी होने पर 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता था, उसे आपातकाल में खत्म कर दिया गया.

मीसाबंदी कानून- 

आपातकाल लागू होने के बाद देश में हजारों छोटे-बड़ राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इन सभी नेताओं को आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था (मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया था. पूरे देश में सरकार का विरोध करने वालों को सीधे तौर मीसा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता था. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस कानून के तहत देशभर में तकरीबन 1 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द नहीं किया होता, देश को इमरजेंसी जैसे काले दिन को नहीं देखना पड़ता।12 जून, 1975 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में कदाचार के लिए दोषी मानते हुए उन्हें उस श्रेणी में किसी भी निर्वाचित पद को रखने से वंचित कर दिया था। माना जाता है कि 25 जून, 1975 को भारत में आपातकाल लगने के न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा का यही फैसला था।

1971 में इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश में रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीता था। इस चुनाव में उन्होंने समाजवादी नेता राज नारायण को बड़ी ही आसानी से हरा दिया था। राज नारायण ने ही बाद में चुनावी कदाचार और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन करने का आरोप लगाकर इंदिरा की जीत को चैलेंज किया था।
 उन्होंने आरोप लगाया गया था कि उनके चुनाव एजेंट यशपाल कपूर एक सरकारी कर्मचारी थे और उन्होंने व्यक्तिगत चुनाव से संबंधित काम के लिए सरकारी अधिकारियों का इस्तेमाल किया था। चुनावी कदाचार के लिए इंदिरा गांधी को दोषी ठहराते हुए न्यायमूर्ति सिन्हा ने उन्हें संसद से अयोग्य घोषित कर दिया था और उनपर किसी भी चुने हुए पद को रखने से छह साल के प्रतिबंध लगा दिया था।अदालत के फैसले के बावजूद इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं थी. विपक्षी नेताओं के पास इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली इस सरकार के असंगत रवैये के खिलाफ सड़कों पर उतरने और विरोध करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. इस कड़वाहट को कम करने और इस मुसीबत से बाहर निकलने के लिए इंदिरा गांधी कानूनी रास्ता अपना सकती थी और राजनीतिक रूप से इसे लड़ सकती थी. लेकिन इसके बजाय, देश के लोगों को आपातकाल मिला. एक ऐसा कदम जो लोकतंत्र के बिल्कुल उलट और विरोधी है.

दिलचस्प बात यह है कि आपातकाल लगाने के एक दिन बाद, सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया. विपक्षी नेताओं को जेलों में डाल दिया गया और मीडिया पर पूरी तरह से नकेल लगा दी गई. उनके कुछ भरोसेमंद सरकारी अधिकारियों की मंजूरी के बिना कोई खबर नहीं छापी जा सकती थी. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बलपूर्वक छीन लिया गया था।उस समय देश में संसद और विपक्षी कार्यवाही नहीं थी।


जनवरी 1977 में इमरजेंसी समाप्त हो गयी। इमरजेंसी की समाप्ति के साथ भारत में नए लोकसभा चुनाव हुए। जिसमें जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी ने जीत हासिल की। यह भारत के इतिहास में पहली बार था जब कांग्रेस लोकसभा इलेक्शन हार गई थी। पार्टी ने सिर्फ 154 सीटें जीतीं, जबकि जनता पार्टी और उनके सहयोगियों को 330 सीटें मिली। पत्रकारों और राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लोगों के बढ़ते आक्रोश के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इमरजेंसी समाप्त करने और नए चुनावों का आह्वान करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बाद में मोरारजी देसाई को देश के पीएम के रूप में नियुक्त किया गया। जिन्होंने देश में प्रेस की स्वतंत्रता को बहाल करने के लिए कई कदम उठाए।


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