आखिर क्यों मनाया जाता है ‘पुलिस स्मृति दिवस’, बहुत कुछ कहते हैं पुलिस इतिहास के पन्ने!
भारत मे आज 21 अक्टूबर को 62वां पुलिस स्मृति दिवस मनाया जा रहा है। इस दिवस को पुलिस शहीदी दिवस के रूप में भी याद किया जाता है। ये दिवस आज के दिन क्यो मनाया जाता है इस पर नज़र डालने से पहले आपको बता दे कि पुलिस समाज का संरक्षण तो करती ही है साथ ही जब भी कोई दैवीय आपदा आती है तो दिन रात अपनी जान की परवाह किये बेगैर रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी रहती है। इसका ताजा उदाहरण उत्तराखंड में आई आपदा है जब जगह जगह पुलिस ने अपनी तत्परता दिखाते हुए लोगो की जान बचाई और अब भी लापता लोगो,खराब सड़को को ठीक करवाने में प्रशासन के साथ जुटी हुई है। पुलिस पर आरोप लगाना बड़ा ही आसान है लेकिन 24x7 ड्यूटी पर डटे पुलिस की तरह आप और हम काम करने की सोच भी नही सकते। आपदा,हादसा,कोई भी महामारी होती है तब अगर चैन से हम अपने घरों में सुरक्षित होते है तो इसके पीछे पुलिस एक बहुत बड़ा कारण होती है। कोरोना काल मे पुलिस कोरोना वारियर्स की तरह दिन रात जुटी थी ये किसी से छुपा नही है।
पुलिस अर्ध सैनिक बलों से जुड़े तमाम भारतवासी जवान आज पुलिस स्मृति दिवस को मना रहे है। एक दूसरे के अद्म्य साहस पर एक दूसरे को सलामी देते है। 1959 में हुआ था जब पुलिसकर्मी पीठ दिखाने के बजाय चीनी सैनिकों की गोलियां सीने पर खाकर शहीद हुए. चीन के साथ देश की सीमा की रक्षा करते हुए जो बलिदान दिया था।आइये अब जानते है आज के इस महत्वपूर्ण दिवस को मनाने के पीछे क्या कारण है। इतिहास के पन्नो को पलट कर देखेंगे तो पुलिस की हैरतअंगेज जानकारी उस घटना के बारे में आपको मिलेंगी जो पुलिस स्मृति दिवस से जुड़ी है।
दरअसल आज से 61 साल पहले 21 अक्टूबर 1959 विश्वासघाती चीनी सैनिकों ने हिंदुस्तान के साथ गद्दारी की थी जिसकी यादें आज भी झकझोर कर रख देती है। 50 के दशक के अंत होने के समय देश की चीन से सटी लद्दाख सीमा की सुरक्षा निगरानी की ज़िम्मेदारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फोर्स जिसे हम शार्ट फॉर्म में सीआरपीएफ कहते है के कंधों पर थी। उस वक्त ये फोर्स घोड़ो पर बैठकर चौकसी के लिए निकला करते थे और हथियारों से लैस पैदल मार्च करते हुए मातहत जवान टुकड़ियों के साथ निकलते थे। लद्दाख की दुर्गम जगह जिसे हॉट स्प्रिंग कहा जाता है में वो मनहूस घटना घटी थी। 21 अक्टूबर 1959 को दोपहर का समय था ,भारत के दुश्मन चीन के हथियारबंद सैकड़ो सैनिकों की भीड़ द्वारा हॉट स्प्रिंग समुद्र तल से करीब 10 हज़ार 500 फिट की ऊंचाई पर हमारे जांबाज सीआरपीएफ के 20 जवानों को चारों ओर से घेर लिया।सीआरपीएफ की टुकड़ी तीन भागों में बंटी हुई थी 20 अक्टूबर को तीन में से दो टुकड़ी वापस लौट चुकी थी तीसरी टुकड़ी वापस नही लौटी उस टुकड़ी में दो सिपाही एक पोर्टर थे। ये टुकड़ी जब वापस नही आई तो तलाश शुरू की गई तीसरी टुकड़ी को ढूढने के लिए नई टुकड़ी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में 20 जवानों को शामिल कर बनाई गई। उस नई टुकड़ी का नेतृत्व खुद बल के डीसीआईओ डिप्टी सेंट्रल इंटेलीजेंस ऑफिसर सब इंस्पेक्टर करम सिंह द्वारा किया गया। उन्होने उस टुकड़ी को भी तीन भागों में बांट लिया। ताकि एक टुकड़ी मुसीबत में फंस जाए तो दूसरी टुकड़ी उसकी मदद कर सके 21 अक्टूबर 1959 को सीमांत हॉट स्प्रिंग क्षेत्र में खोए हुए तीनों जवानों की तलाश शुरू कर दी गयी। करम सिंह घोड़े पर सवार थे जबकि बाकी पुलिसकर्मी पैदल थे, पैदल सैनिकों को 3 टुकड़ियों में बांट दिया गया था,तभी दोपहर के समय चीन के सैनिकों ने एक पहाड़ी से गोलियां चलाना और ग्रेनेड्स फेंकना शुरू कर दिया। ये टुकड़ियां खुद की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं करके गई थीं, इसलिए ज्यादातर सैनिक घायल हो गए। क्योंकि उन पर गोलियों और बमों से हमला हुआ था। तब उस हमले में देश 10 वीर पुलिसकर्मी शहीद हो गए जबकि सात अन्य बुरी तरह घायल हो गए। 7 जवान बुरी तरह जख्मी हो गए,शहीद हुए 10 जवानों को 7 घायल सैनिकों को चीनी सैनिक बंधक बनाकर अपने साथ ले गए। उस हमले में कुछ भारतीय सैनिकों ने बहादुरी के साथ मोर्चा संभाला और सुरक्षित बाहर भी आ गए। उस घटना के बाद चीन ने 13 नवंबर 1959 को करीब 23 दिन बाद हमारे भारतीय सैनिकों के शव वापस हिंदुस्तान को लौटाए। और घायलों को वापस किया। वापस लौटाए गए उन शहीदो का हॉट स्प्रिंग में ही पुलिस सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इसके बाद से ही हर साल 21 अक्टूबर के दिन शहीद रणबांकुरों की याद में पुलिस स्मृति दिवस ।मनाया जाता है। उन भारतीय पुलिस के त्याग,समर्पण, ईमानदारी, और बहादुरी की मिसाल सदियों तक दी जाएगी। हॉट स्प्रिंग में उन बहादुर शहीदों की याद में पुलिस स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया था।