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उत्तराखंड में तबाही की आहट!9 वार्डस के 500 से ज़्यादा मकानों में आई दरारें!जगह जगह भू धंसाव!परियोजनाओं की भेंट चढ़ता एक और शहर इतिहास के पन्नो में होने वाला है दफन?

  • Kanchan Verma
  • December 25, 2022
Uttarakhand: The sound of devastation! Cracks have come everywhere, the historic city of Joshimath is in danger.

उत्तराखंड/चमोली-जोशीमठ:26/12/022

उत्तराखंड का बेहद ही खूबसूरत और आध्यात्मिक शहर है जोशीमठ! जो बद्रीनाथ धाम की यात्रा का मुख्य पड़ाव माना जाता है आज इतिहास के पन्नो में दफन होने की कगार पर है। जोशीमठ के 9 वार्डो के 500 से ज़्यादा मकानों में बड़ी बड़ी दरारें आ चुकी है। जगह जगह भूधंसाव की घटनाओ से पूरे शहर में दहशत फैल चुकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां बनने वाली तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना की टनल के कारण जोशीमठ में भू-धंसाव हो रहा है. इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

वही 24 दिसम्बर को जोशीमठ में हजारों लोगों ने नगर में विशाल जन आक्रोश रैली तक निकाली,इस दौरान नगर के सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे। लोगों का कहना है कि यहां बनने वाली तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना की टनल के कारण जोशीमठ में भू-धंसाव हो रहा है. इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

 

उत्तराखंड में जोशीमठ पहला शहर नही है जिसका ये हाल हो गया है,इसी वर्ष अप्रैल में लखवाड़ व्यासी जल विद्युत परियोजना की जद में लोहारी गांव का नामो निशान तक मिट चुका है। एक झटके में पूरा लोहारी गांव यमुना नदी में समा गया,सैकड़ो लोग बेघर हो गए,सैकड़ो वर्षों की संस्कृति एक पल में डूब गई और उत्तराखंड सरकार मूक दर्शक बनकर लोहारी गांव को डूबते देखने का गवाह बना।


आज जोशीमठ भी उसी कगार पर खड़ा है। खतरे की जद में खड़ा जोशीमठ लाचार है क्योंकि इस ऐतिहासिक शहर के लिए सरकार के पास कोई मास्टर प्लान ही नही है। 

 


2018 में करंट साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस जगह को संवेदनशील माना था और रिपोर्ट में कि जोशीमठ से 8 किमी दूर धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम में विंष्णुप्रयाग पर बड़े पैमाने पर लैंड स्लाइड की बात कही गयी है। 2009 और 2012 के बीच CSIR के मुख्य वैज्ञानिक कानूनगो द्वारा चमोली जोशीमठ क्षेत्र में 128 लैंडस्लाइड दर्ज किए,जर्नल ऑफ द इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑन लैंडस्लाइड में इसका जिक्र भी है।वही जोशीमठ का हाथी पर्वत लैंडस्लाइड के लिहाज से बेहद ही संवेदनशील है क्योंकि यहां ढीले बोल्डर और ढलानों पर बड़े रॉक्स ब्लॉक मौजूद है। और ऐसी जगह पर भारी बारिश में ट्रिगरिंग इत्यादि भी विफल हो सकता है। चमोली बद्रीनाथ तक का सड़क क्षेत्र वैसे भी कमजोर भूगर्भीय संरचना पर बना है जो क्षेत्र को बेहद संवेदनशील और भूस्खलन वाला क्षेत्र बनाता है।

 


वर्तमान में जोशीमठ धीरे धीरे नीचे ज़मीन में धंसता जा रहा है,और लोग दरार पड़े मकानों में रहने को मजबूर है उनकी जान को एक बड़ा खतरा है। 2021 की जनगणना के मुताबिक चमोली जिले की जनसंख्या 8 लाख 99 हज़ार के करीब थी,वही अगर दस साल पहले की जनसंख्या देखें तो 2011 में करीब 4 लाख 55 हज़ार थी दस सालों में जनसंख्या दोगुनी हो गयी ,बढ़ती जनसंख्या, बेतरतीब निर्माणकार्य,बिना प्लानिंग योजनाओं की अनुमति, पर्यावरणीय असंतुलन के कारण ही आज जोशीमठ शहर पर इतना बड़ा खतरा मंडरा रहा है। 

आपको अगर याद हो तो बीते वर्ष 2021 में फरवरी माह में चमोली जिले के जोशीमठ में ग्लेशियर टूटने की वजह से भयंकर बाढ़ आई थी,जिसमे करीब 180 से ज़्यादा लोगो की मौत हो गयी थी। इसके बाद घरों में दरार पड़ने लगी और तभी से घरों में दरार आने की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। जोशीमठ के नैनी गांव से लेकर सुनील गांव तक कई गांवों में इस तरह की दरारें अचानक उभरने लगी जैसे मानो ज़मीन नीचे धंस रही हो और मकान ज़मीदोज़ होने वाले हो। 

विशेषज्ञों की माने तो जोशीमठ की ये हालत अत्यधिक निर्माण कार्य और यहां बन रहे बांधो की वजह से ये दरारें पड़ रही है। वैज्ञानिक जोशीमठ की पूरी बेल्ट पर अध्ययन कर रहे है कई वैज्ञानिक रिसर्च पूरी भी कर चुके है। रुड़की आइआइटी और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक भी लगातार इस इलाके पर नजर बनाए हुए है,उनका कहना है कि जोशीमठ भूकंप के लिहाज से ज़ोन 5 में आता है।

अगर पिछले आंकड़ों पर नजर डाले तो 2011 में चार हज़ार घरों में तकरीबन 17 हज़ार लोग रहते थे लेकिन इस क्षेत्र में जब से दूसरी परियोजनाओ का विस्तार हुआ और ट्रैफिक बढ़ा,साथ मे अत्यधिक बारिश हुई तब से यहां भूस्खलन ज़्यादा बढ़ गया। 

एक रिपोर्ट के मुताबिक 1976 में इस इलाके में पहली बार भूस्खलन की बड़ी घटना रिकॉर्ड की गई थी,तब यूपी सरकार ने मिश्रा कमेटी का गठन किया था जिसने इस शहर में पहाड़ो में दरारें आने की बात की पुष्टि की थी। 1976 में कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ और आसपास के कई जिलों में प्राकृतिक जंगलों के कटान किये गए,सड़को का निर्माण कार्य किया गया,तमाम योजनाओं को लाया गया जिसकी वजह से यहां के इलाके पर बुरा प्रभाव पड़ा। रिपोर्ट में ये माना गया कि प्रोजेक्ट्स के लिए पहाड़ो का कटान करना विस्फोटों का प्रयोग करना और अच्छा ड्रेनेज सिस्टम न होना भूस्खलन की बड़ी वजह है। 
जोशीमठ के स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां बनने वाली तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना की टनल के कारण जोशीमठ में भू-धंसाव हो रहा है. इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

वही जोशीमठ के व्यापार मंडल का कहना है कि नगर की 800 से अधिक दुकानें पूरी तरह से बंद हैं,अगर उनकी मांगे न मानी गईं तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।

जोशीमठ को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन और आंदोलन लगातार जारी है। इससे पहले कब कब आंदोलन और विरोध प्रदर्शन हुए आइये एक नजर डालते है।

1999-2000 में हाथी पर्वत में सुरंग बनाने का विरोध हुआ था। सुरंग को नदी की दिशा बदलकर जोशीमठ करना था।
कानूनगो के मुताबिक भूमिगत सुरंगें होल बनाती हैं। इसलिए सुरंग की सिधाई को समझना होगा। "क्षेत्र की ठीक से जांच और निरीक्षण करना आवश्यक है और उसके बाद ही आगे धंसने की जांच के लिए इंजीनियरिंग समाधान या उपायों को डिजाइन किया जा सकता है,कानूनगो को डर था कि कई विकास निकाय जैसे कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) वास्तव में इलाके, पहाड़ी ढलानों या भूस्खलन के पीछे के कारणों को नहीं समझते हैं। जागरूकता की यह कमी बड़े खतरे का कारण हो सकता है।
वही इस इलाके पर रिसर्च कर रहे कुछ वैज्ञानिको ने कहा था  कि उपचारात्मक उपायों के लिए बुनियादी ढांचे की प्रक्रिया में भूस्खलन को समझना और उस पर ध्यान देने की जरूरत है, केवल एक रिटेनिंग वॉल लगाना पर्याप्त नहीं है। हर जगह भूस्खलन अलग तरह का होता है, इसलिए इसका प्रभाव भी अलग होगा।
पर्यावरणविदों की शिकायत है कि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की सिफारिशों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जोशीमठ में अभी भी उचित जल निकासी व्यवस्था का अभाव है और, विकास परियोजनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट भी हेलंग-मारवाड़ी बाईपास सड़क के निर्माण को हरी झंडी दे चुका है, यह जोशीमठ से पहले 13 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसा कहा गया कि ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत बाईपास बनने से बद्रीनाथ मंदिर शहर की दूरी 30 किलोमीटर कम हो जाएगी,जबकि इतने भारी निर्माण कार्य से इसका बुरा प्रभाव ही पड़ना है।

आज जोशीमठ में ज़्यादातर घरों में भू धंसाव हो चुका है दरारें बढ़ गयी है,कई घर रहने लायक ही नही बचे,कई नए घरों में ताला लटका हुआ है,अपनी जान बचाने के लिए लोग यहां से पलायन करने को मजबूर है,और किसी दूसरी सुरक्षित जगह निकल गए है वही कुछ घर अब भी ऐसे है जो खतरे की जद में होने के बावजूद लोगो ने नही छोड़े और वो लोग खौफ के साये में रहने को मजबूर है साथ ही सरकारी तंत्र की मनमानी का खामियाजा भुगतने को भी मजबूर है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

फ़ोटो साभार:गूगल, यूट्यूब

न्यूज़ सोर्स:विभिन्न आर्टिकल और पुख्ता सूचनाओ पर आधारित।


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